इस पोस्ट में राजस्थान के इतिहास केा महत्वपूर्ण शाशक बप्पा रावल के बारे में जानकरी प्राप्त करेंगे
बाप्प रावल
बापा रावल का मूलनाम कालभोज था। बापा इसका प्रसिद्ध नाम था एवं 'रावल' इसका विरुद (उपाधि) था। डॉ. जी.एच. ओझा के अनुसार बापा इसका नाम न होकर कालभोज की उपाधि थी।
बाप्प रावल
ऐसी मान्यता है कि बापा रावल हारीत ऋषि को गायें चराता था। हारीत ऋषि को अनुकम्पा से ही बापा रावल ने मेवाड़ का राज्य प्राप्त किया था। बप्पा चित्तौड़ के शासक मान मोरी की सेवा में चला गया।
बाप्प रावल
विदेशी मुगल सेना ने चित्तौड़ पर आक्रमण कर दिया। राजा मान ने अपने सामन्तों को विदेशी सेना का मुकाबला करने के लिए इंकार कर दिया। बप्पा रावल ने इस चुनौती को स्वीकार किया
बाप्प रावल
गजनी के शासक सलीम को हराकर बप्पा ने अपने भानजे को वहाँ के सिंहासन पर बैठाया। बप्पा ने सलीम की पुत्री के साथ विवाह किया और चित्तौड़ लौट आया।
बाप्प रावल
बप्पा ने चित्तौड़ पर अधिकार कर तीन उपाधियाँ- 'हिन्दू सूर्य', 'राजगुरु' और 'चक्कवे' धारण की।कविराजा श्यामलदास ने 'वीर विनोद' में बापा द्वारा मौयों से चित्तौड़ दुर्गं छौनने का समय 734 ई. बताया है।
बाप्प रावल
बप्पा के समय के तांबे एवं स्वर्ण धातु के सिक्के मिले हैं जिनमें स्वर्ण सिक्का 115 ग्रेन का है। इन पर कामधेनु, शिवलिंग, बछडा, नन्दी, दण्डवत करता हुआ पुरुष, त्रिशूल, चमर आदि का अंकन हुआ है।
बाप्प रावल
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